Wednesday, January 7, 2009

Hindi Fiction

अमेरिका में प्रणय 
 मैडम, आर यू फ्रॉम इंडिया?"(क्या आप भारत से आईं हैं?) 
 
पब्लिक ट्रांसपोर्ट में घूमने के काफी मजे हैं। उनमें से एक बड़ा लाभ यह भी है कि लड़कियों से बात करने का काफी मौका रहता है। मैं तो अक्सर किसी भी गोरी, अफ्रीकन या लातिनो लड़कियों से जान बूझकर यह सवाल करता हूँ, पर वह 24-25 साल की लड़की वाकई भारतीय थी। यूँ थी वो गोरी चिट्टी और नीली जींस और गुलाबी टीशर्ट में किसी गोरी से कम नहीं लग रही थी पर भारतीय साफ पहचान में आ जाते हैं।
 
"येस ! बट व्हाय?" उसने मुझे परेशान नज़रों से देखा।
 
"काम ऑन मैडम, आई ऍम अल्सो फ्रॉम इंडिया !" फ़िर मैं जान बूझकर हिन्दी मैं उतर आया ताकि आस पड़ोस के लोगों को पता न चले हम क्या बातें कर रहे हैं। "हिन्दी बोलती हैं आप?"
 
"हाँ" वो बोली।
 
"नहीं, मैंने आपको शहर का नक्शा पकड़कर खोजते हुए देखा तो सोचा कि आप शहर में नई हैं। घर वगैरह का इंतजाम हो गया?"
 
वह मुस्कुराई," मैं यहाँ घर बसाने नहीं आई। मेरी एक कांफ्रेंस है- तीन दिन की !"
"ओह, तो आप एल ऐ की मेहमान हैं, फ़िर तो मेरी भी मेहमान हुई। तो आपकी मदद करना मेरा फ़र्ज़ है, कहिये कहाँ जाना है?"
 
उसे सांता मोनिका के किसी होटल में जाना और मुझे वेस्ट वुड ! पर मैंने सोचा कि आज ऑफिस में भले देर हो जाए, इससे जितनी बातें हो जाए अच्छा है। बातों बातों में उसने अपना नाम बताया- मालती जोशी !
 
"यह तो एक बड़ी लेखिका का नाम है !" मैंने कहा।
 
वह खिलखिला कर हंस दी। वह भारत सरकार के पर्यटन विभाग में थी और सरकार ने उसे इस कांफ्रेंस के लिए भेजा था।
 
मैंने उसे टटोलने की कोशिश की,"फ़िर तो चुन्नू मुन्नू आपको मिस कर रहे होंगे?"
"कौन चुन्नु मुन्नू ?" उसने थोड़ा अनजान सा बनकर पूछा।
 
"आपके चुन्नू मुन्नू और उनके पापा !" मैंने कहा।
 
इस बार वह ऐसे हँसी कि उसके मोती जैसे दांत दिखने लगे। फ़िर उसने जवाब दिया," हाँ हाँ ! चुन्नू मुन्नू तो नहीं, उनके चुन्नू मुन्नू जरुर दादी को मिस कर रहे होंगे। क्या .... अरे नाम भी नहीं बताया आपने !"
 
"ओहऽऽ हो विशाल ! तो क्या मैं यह मतलब निकालूं कि अभी तक आपके जीवन में कोई नहीं आया है?"
 
बातों बातों में पता चला कि वह मुझसे दो साल छोटी है। जब उसे यह पता चला कि मेरे जीवन में भी कोई नहीं है, तो उसके ओंठों पर मुस्कान आ गई।
 
मेरे मन में लड्डू फूट रहे थे। वैसे तो उसका होटल एयरपोर्ट के पास था, पर किसी लातिनो टैक्सी वाले ने पता ठीक नहीं समझा और उसे वेनिस-बीच के आस पास उतार दिया। शायद मेरी किस्मत ने.......
 
मैंने उसे फ़ोन नम्बर दिया और ले भी लिया। मैंने कहा कि कोई भी मुश्किल हो, मुझे फ़ोन कर ले।
 
शाम को आठ बजे के आसपास जब उसका कोई फ़ोन नहीं आया तो मैंने निश्चय किया कि मैं ही फ़ोन कर लूँ। भले वह कुछ भी समझे। तभी फ़ोन की घन्टी बजी। नम्बर कुछ अटपटा सा था, पर यह उसकी ही आवाज़ थी।
 
"अरे आप ! किस नम्बर से फ़ोन कर रही हैं?" मैंने पूछा।
 
"कमरे से !"
 
"कमरे में पहुँच गई आप? इस बार टैक्सी ने परेशान तो नहीं किया?" मैंने पूछा,"कहिये, एक प्यारी सी मेहमान की क्या खिदमत करे यह बन्दा?" मैंने पूछा।
 
"इतवार को मेरी छुट्टी है, यहाँ से डिज्नीलैंड कितनी दूर है? मैं जाना चाहती हूँ, कैसे जा सकती हूँ? टैक्सी से मैं जाना नहीं चाहती, काफी महंगा पड़ेगा ना?"
 
"यह बन्दा किस लिए है? मेरी खटारा है ना?" मैंने कहा।
 
"नहीं, आपको तकलीफ होगी !"
 
"तकलीफ कैसी? सप्ताह मैं एक बार उसे वैसे ही हवाखोरी के लिए ले जाता हूँ !" मैंने कहा।
उसकी खनकती हुई हंसी फ़ोन मैं गूंजी, फ़िर उसने कहा,"नहीं, मैं पब्लिक ट्रांसपोर्ट में ही जाऊँगी।"
 
यार बड़ी खच्चर लड़की है, बात ही नहीं समझती।
 
मैंने कहा," ठीक है फ़िर.तुम परेशान हो जाओगी ! मैं तुम्हारे साथ चलूँगा !"
 
थोड़ी सी न-नुकर के बाद वह मान गई। इतवार को मैंने बैग पैक किया, पहले सोचा कार से चलते हैं, उसे मना लूँगा, फ़िर सोचा कहीं उसने मना कर दिया और पार्किंग नहीं मिली तो लेने के देने पड़ जायेंगे, वैसे भी बड़ी जिद्दी लड़की है। मैंने उससे कहा था कि पब्लिक ट्रांसपोर्ट से जाना है तो मुंह अंधेरे ही जाना पड़ेगा।
 
वह होटल के बाहर खड़ी मेरा इंतज़ार कर रही थी। आज उसने काली स्कर्ट और नीली कॉलर वाली हलकी पीली टी शर्ट पहनी थी। 
 
ग्रीन लाइन के स्टेशन पर पहले ट्रेन का इंतज़ार करना था। ट्रेन आने में थोड़ी देर थी। हम इधर उधर की बातें करते रहे। मैंने उसे भरपूर नज़र से देखा। बला की खूबसूरत लड़की थी, कद होगा करीब ५' २",मुझसे चार इंच कम, लंबे बाल, फूले फूले गाल, उन्नत उरोज पतली कमर और चौड़े नितम्ब, बड़ी-बड़ी आँखें, पतले ओंठ। मुझे इस तरह देखते वह झेंप भी गई।
 
अचानक मैंने देखा उसने एक बड़ा बैग उठा रखा है,"क्या है इसमें?" मैंने पूछा,"माना कि लड़कियों का बैग नहीं देखते, पर यह क्या भर कर रखा है ?"
 
"खाने पीने का सामान !" उसने कहा,"पूरा दिन लग जाएगा, मैंने सोचा कि...."
 
मैंने सर पीट लिया,"डिज्नी लैंड में मेरे ताऊ बैठे हैं न जो इसे अन्दर ले जाने देंगे ! फेंको इसे !"
 
"क्या? फेंक दें? अन्न का अपमान?"
 
"तुम तो मेरी अम्मा जैसे बात कर रही हो ! फेंकना नहीं है तो खाओ !"
"अभी?"
 
"तो कब? ट्रेन में खाना मना है, फ़िर बस पकडेंगे, उसमें भी खाना मना है। चलो निकालो !"
वह घबरा गई,"यह तुम्हारे लिए भी है !"
 
हे भगवान ! प्लेटफोर्म में हम बैठे परांठे खा रहे थे जो उसने इंडियन शॉप से रात में आर्डर देकर मंगाया था। उसका छोटा सा पेट जल्दी भर गया और नखरे शुरू हो गए। मुझे इसी छीना-झपटी का इंतज़ार था, मैंने उसका हाथ पकड़ा और एक कौर जबरदस्ती मुंह में ठूंस दिया।
"विशाल, मेरा हाथ तो छोडो ! उई माँ !"
 
मैंने उसका हाथ छोड़ा नहीं, बल्कि मरोड़ के पीठ पर ले गया अब हम दोनों के जिस्म में छः इंच का फासला था और अगर मैं हाथ और थोड़ा मरोड़ता तो उसके उन्नत उरोज शायद मेरे सीने में दस्तक दे देते पर उसकी आंखों में आंसू आ गए।
 
"विशाल, सच्ची, उलटी हो जायेगी !"
 
तभी ट्रेन आ गई। मैंने पकड़ ढीली की पर उसका हाथ नहीं छोड़ा। डिब्बे में बैठकर भी नहीं छोड़ा। फ़िर जेब से एक टिशु निकाल कर उसका मुंह पोछा,"झूठे मुंह सफर नहीं करते !" उसे हँसी आ गई।
 
उसके बाद ट्रेन में और फ़िर बस में वह प्यारी बातें करती रही। उसकी बातों का पिटारा थमने का नाम ही नहीं लेता था। पर वह बोर नहीं कर रही थी। उसके चेहरे के हाव भाव, भाव भंगिमा, सब कुछ लुभा देने वाला था। हँसते हँसते मैंने उसकी पीठ पर एक दो बार धौल भी जमाया। कभी उसने मुझे छेड़ा तो मैंने बाल भी खींचे। अमेरिका में यह बात अच्छी है कि आस पास के लोग कोई परवाह नहीं करते।
 
कई बार मैं अपना चेहरा उसके गाल के काफी करीब ले गया पर चुम्बन की तीव्र इच्छा का किसी तरह दमन किया। कई बार उसके हथेली पर अंगूठा फेरा, उसकी कोहनी सहलाई, पाँव से उसके पाँव पर ठोकर मारी। एक बार हिम्मत कर के जांघ पर भी हाथ रख दिया। वह शरमाई जरुर, पर उसने हाथ हटाया नहीं !
 
डिज़नीलैंड देखकर वह हैरान रह गई और बच्चों की तरह उत्साह से भर गई। उसे काबू में करना मुश्किल हो गया। वह मेरा हाथ पकड़कर कभी इधर, कभी उधर ले जाने लगी। उसे मैंने प्यार से कई बार समझाया, कभी "माला" कभी "लती" कभी "लता" कभी "मति" कहकर पुकारा।
 
वह फ़िर इधर उधर जाने लगी। अब मैंने उसका हाथ पकड़कर खींचा, अब वह पास आई तो मैंने दोनों हाथ पकड़ लिए, मैंने समझाया,"मालती, तुम्हारा पहली बार डिजनी लैंड में आना हुआ है, सब चीज देखना मुश्किल है, फ़िर हमें कैलिफोर्निया एडवेंचर पार्क भी जाना है। लाइन तो तुम देख रही हो, ऐसा करते हैं, पहले जिसका फास्ट पास मिले वह ले लेते हैं, फ़िर मुख्य मुख्य जगह चलते हैं।
 
अब मैंने सोच लिया था कि यह ऐसे नहीं मानेगी, इसे थोड़ा पंचर किया जाए. उसे लेकर स्पेस माउन्टेन में ले गया. वह एक खतरनाक रोलर-कास्टर था। ऊपर से नीचे आते समय मैं जान बूझ कर उससे सट गया उसके हाथ हेंडल पर जमे थे, पर वो डरकर मुझसे चिपक गई।
 
उससे भी ज्यादा मज़ा तो थंडर माउन्टेन में आया, इस बार मै अपना एक हाथ उसकी पीठ के पीछे ले गया और खतरनाक मोड़ आने पर उसके एक उन्नत उरोज में हाथ का दबाव जमा कर उसे पास खींच लिया। ठोस टेनिस बाल की तरह के उरोज पर हाथ लगते ही मेरे लिंग में जबरदस्त तनाव आया।
 
वह सवारी खत्म होने के बाद मैंने देखा कि उसका चेहरा सुर्ख हो गया है.उसके सुडौल उरोज साँसों के साथ ऊपर नीचे हो रहे थे।
 
"ओह बाबा !" वह बोली,"कहाँ फंस गई मैं?" 
 
मैंने उसकी पीठ पर हाथ फेरा और धीरे से उंगलियाँ बालों में फेरकर बोला,"मैं हूँ ना ! चलो खाना खाते हैं।"
 
उसे मेक्सिकान रेस्टारेंट में ले गया। खाना खाते खाते उसे देखकर मुस्कुराया, वह भी मुस्कुराई। मैंने कहा,"मालती, एक बात कहूँ ! तुम काफी हसीन लग रही हो !"
 
खाने के बाद 'इन्डियाना जोन्स' के फास्ट पास का समय हो गया था। तेज रफ्तार और अंधेरे में वह फ़िर घबराई। इस बार मैंने उसकी कमर में हाथ डालकर अपने पास खीँच लिया। डर के मारे उसने अपना सर मेरे सीने में छुपा लिया। मैं उसे और डराने लगा, "लती देखो, लटका हुआ आदमी.माला, देखो बिच्छुओं का झुंड !
 
जब उसने आँख नहीं खोली तो मैंने एक कुच को हलके से दबाया, वह चिहुंक गई। 
 
बाहर निकल कर मैंने देखा, उसके स्तनाग्र सिपाही की तरह तन गए थे। मैंने उसका हाथ थामा और जुल्फें संवारी। मैं चाहता था कि मदहोशी का यह खेल थोड़ा आगे बढ़ाया जाए।
 
अब हम पैरेट्स ऑफ़ कैरिबियन की सवारी की ओर बढ़े। जैसे ही हमारी नाव अंधेरे में बढ़ी, मैंने मालती के जाँघों पर हाथ रखकर हल्के से दबाव बढाया। वह कुछ प्रतिक्रिया करती, उसके पहले ही एक झटका लगा और अंधेरे में नाव नीचे चले गई। मेरा हाथ फिसलकर उसकी जांघों के बीच आ गया। मैंने हाथ धीरे धीरे आगे बढ़ाया और स्कर्ट के उपर उसकी योनि पर हाथ रख दिया, उसकी साँसे तेज चलने लगी।
 
सवारी आगे बढ़ ही नहीं रही थी पर मेरे हाथ आगे बढ़ रहे थे। उधर अंधेरे में मालती की भी हिम्मत बढ़ गई थी। वह मेरा बिल्कुल विरोध नहीं कर रही थी।
 
तभी एक उदघोषणा हुई कि सवारी के सिस्टम में कोई खराबी हो गई है और इंजिनियर ठीक कर रहे हैं।
 
मुझे मानो मन-मांगी मुराद मिल गई। इस बार मैंने हाथ पीछे किए और उसके स्कर्ट के अन्दर हाथ डाल दिया। उफ़ ! कितनी स्निग्ध थी उसकी जांघें। उसके मुंह से एक फुरफुरी निकली और मेरे हाथ फिसल कर उसकी पेंटी से टकराए। कामोत्तेजना से उसकी पैन्टी आर्द्र हो गई थी। मैंने पैन्टी के उपर उसकी झिर्री टटोली। उसने दांतों से अपने ओंठों को जोर से दबा लिया, साँसे तेजी से चल रही थी।
 
फ़िर मैंने पैंटी के साइड से उंगलियाँ अन्दर डाली और अंगूठा बालों के जंगल से होता हुआ गीली और फिसलन भरी गुफा तक जा पहुँचा। योनि की दरार को टटोलता अंगूठा उपर बढ़ा और उसकी भगनासा से जा टकराया। अब मालती के मुंह से सिसकी निकल पड़ी। उसने अपने को काबू में करके मेरा हाथ थाम लिया।
 
"विशाल, न न नहीं..!" वह किसी तरह बोली।
 
तभी उदघोषणा हुई कि सवारी में खराबी की वजह से यह यहीं स्थगित की जाती है। सबको समय ख़राब होने की वजह से एक एक टिकट दिया गया, जिसे वो किसी अन्य सवारी में बिन लाइन में लगे उपयोग में ला सकते थे।
 
"माला, ऐसा करते हैं, कैलिफोर्निया एडवेंचर पार्क चलते हैं। इसका उपयोग बाद में करेगे।" मैंने उसे समझाया।
 
"तुम ही मेरे मार्ग निर्देशक हो, जैसा तुम कहो !"
 
"ये हुई ना समझदार लड़कियों वाली बात !" मैंने उसे कहा।
 
उसे लेकर में सीधा ग्रिज्ली रिवर की सवारी में ले गया जिसमें एक घूमता हुआ बेडा खतरनाक लहरों और झरनों, जल प्रपात के नीचे से होता हुआ जाता है। जब वह पहले खतरनाक जल प्रपात के नीचे से गुजरा वह मुझसे चिपट गई। उपर से गिरते पानी की तेज धार ने हम दोनों को सराबोर कर दिया। मालती की पतली टी शर्ट उसके बदन से चिपक गई और उसकी दूधिया ब्रा साफ़ दिखने लगी। अभी वह कुछ सम्हालती कि पानी की एक और बौछार उस पर पड़ी अब मानो कपडों का कोई अस्तित्व ही नहीं रहा।
 
"तुम बड़े शैतान हो !" बाहर निकल कर वह शिकायत के लहजे में बोली,"देखो, मेरे सारे कपड़े गीले हो गए।"
 
"अन्दर के भी?" मैंने शरारत से पूछा।
 
"क्या मतलब है तुम्हारा?"
 
"मतलब यह कि इस सवारी को दोष मत दो ! अंदर के नीचे के कपड़े पहले पहले ही गीले हो हो गए थे, मैं जानता हूँ।"
 
पहले वह शरमाई, फ़िर उसका चेहरा गुस्से से लाल हो गया,"विशाल, तुम्हारी बेशरमी बढ़ती जा रही है !"
 
मैंने कान पकड़े और कहा,"एक बात कहूँ, तुम बारिश में भीगी फिल्मी हिरोइन की तरह दिख रही हो !"
 
"पर मुझे सर्दी हो जायेगी, आक छी." उसे छींक आ गई।
 
मैंने कहा,"लती, एक बात बोलूं? अन्यथा मत लेना !"
 
"अब क्या बचा है?" वह झल्लाकर बोली।
 
मैं मन ही मन बोला,"सब कुछ !"
 
पर मुझे वाकई दया आ गई, मैंने कहा,"मालती, में एक एक्स्ट्रा टी शर्ट लाया हूँ, मुझे मालूम था, यहाँ ऐसा होगा, तुम पहन लो।"
 
वह गुस्से से बोली,"क्या?"
 
मैंने कहा,"कॉमन सेंस से काम लो. मेरी टी शर्ट है तो क्या? थोड़ी ओवर साइज़ ही होगी।" फ़िर मैं पास आकर बोला,"और मेरी एक ब्रीफ भी है.तुम्हें थोड़ी ढीली होगी पर पहन लो।"
थोड़ी न-नुकर के बाद वह मान गई और बाथ रूम में जाकर चेंज कर लिया।
 
जब वह बाहर आई तो मैंने देखा कि उसके हाथ में गीले कपडों का बण्डल है.उसने मेरे बैग की जिप खोली और कपड़े उसमें डाल दिए।
 
मैंने देखा, उसने ओवर साइज़ टी शर्ट का फायदा उठाकर गीली ब्रा भी उतार दी है और उसके स्तन हर कदम के साथ उपर नीचे हो रहे हैं।
 
उसने मुझे उरोजों को देखते हुए देख लिया,बोली,"क्या है?"
 
मैंने अपना मुंह उसके कान के पास लाकर कहा," मालती, तुम्हारा वो चूसने को मन कर रहा है !"
 
वह झल्लाए स्वर में बोली,"अगर तुम मेरा वो चूसोगे तो मैं भी तुम्हारा वो चूसूंगी !"
 
मैं हैरान रह गया। मेरा लिंग मानो अंडरवियर फाड़ कर बाहर आना चाहता था।
मैंने कहा,"मुझे खुशी है, तुम थोड़ी बेशरम तो हुई !"
 
वह कुछ समझी नहीं, बोली," बेशर्मी की क्या बात है? तुमने कहा तुम मेरा खून चूसोगे। अगर तुम मेरा खून चूसोगे तो मैं तुम्हारा खून चूसूंगी।"
 
"पर खून तो मच्छर चूसते हैं।"
 
और दोनों खिलखिला कर हंस पड़े।
 
हम फ़िर डिज्नी लैंड के मुख्य पार्क में आ गए, शाम ढल चुकी थी। दोनों थक गए थे। पर मालती को इलेक्ट्रिक परेड देखना था। मैंने भी सोचा, चलो, इतनी महँगी टिकट ली है तो वह भी देखा जाए, उसके लिए समय था। मैं रात के लिए योजना बना रहा था। काश ! किसी तरह मालती तैयार हो जाए !
 
"क्या सोच रहे हो?" मालती ने कहा," मुझे डिज्नी की यादगार चाहिए ! मुझे एक पेनी और दो क्वाटर दो।"
 
वह एक मशीन के पास खड़ी थी जिसमें एक पेनी और दो क्वार्टर डालने पर वह पेनी को चपटा करके डिज्नी के किसी चरित्र का चेहरा छाप देती थी।
 
मैंने हाथ ऊपर कर लिए,"पैन्ट से निकाल लो !"
 
"दो ना !" वह बोली।
 
"अरे बाबा, निकाल लो ना !" मैंने कहा।
 
उसने जेब में हाथ डालकर टटोला। उसकी उंगलियाँ लिंग से टकराई, लिंग ने अंगडाई ली और वह लाल भभूका हुई।
 
मैंने सोच लिया, आज रात को इसे समागम के लिए तैयार किया जाए तो मज़ा आ जाए।
 
इलेक्ट्रिक परेड में जबरदस्त भीड़ थी और हम थोड़ा विलंब से पहुंचे। मालती अपने पंजों पर खड़ी हुई, पर उसे कुछ दिख नहीं रहा था।
 
"धत," वह निराशा से बोली,"विशाल, सब तुम्हारी गलती है !"
 
मैंने उसकी जाँघों को पकड़ा और उसे हवा में उठा लिया।
 
"ओह विशाल, क्या कर रहे हो?"
 
"अपनी, प्यारी प्यारी प्रेमिका की छोटी सी मुराद पूरी कर रहा हूँ !" मैंने उसके गाल चूमते हुए कहा।
 
जब तक परेड चलती रही, मैं उसे बाँहों में उठाये रहा। वह डिजीटल कैमरे से क्लिक क्लिक करते रही, हर क्लिक पर मैं उसके गाल एक बार चूम लेता था। मैं महसूस कर रहा था कि उसका बदन भी धीरे धीरे तप रहा है।
 
मैं स्वप्न लोक में था पर तभी मुझे एक झटका लगा।
 
परेड ख़त्म होने के बाद हम वापिस आ रहे थे। मैंने उसके कान में धीरे से प्रणय का इज़हार किया,"मालती ! क्या आज रात में हम यौन-आनन्द लें?"
 
वह रुक गई, मेरी ओर देख कर बोली," विशाल, बुरा मत मानना ! तुम बहुत अच्छे इंसान हो ! मैं बहुत खुश हूँ कि मुझे तुम्हारे जैसा दोस्त मिला ! पर मैं अक्षत-यौवना हूँ ! मैं अपना कौमार्य अपने पति को भेंट देना चाहती हूँ।"
 
मुझे एक झटका लगा, साथ ही मुझे लगा कि किसी ने मुझे एक झापड़ मारा हो ! रास्ते भर हमने बात नहीं की। बस में उसे नींद आ गई। वह मेरे कंधे पर सर रखकर सो गई। मैं उसके मासूम चेहरे को देखता रहा। वह कितनी मासूम है ! अब मुझे आत्म-ग्लानि होने लगी ! मैंने उसके बालों में धीरे से हाथ फेरा,"माला ! उठो ! नोरवाक आ गया है, यहाँ से हमें ग्रीन लाइन की ट्रेन पकड़नी है।" 
 
हम ग्रीन लाइन की ट्रेन से एविएशन स्टेशन आये, वहां से टैक्सी से उसके होटल चले गए।
मुझे अपना टीशर्ट और अंडरवियर याद नहीं रहा। मालती ने ही कहा,"चलो, मेरे कमरे में चलो, तुम्हारा टीशर्ट देती हूँ।"
 
"और वो भी !" मैंने कहा।
 
"हाँ, वो भी !" वह मुस्कुराई।
 
कमरे में आकर वह बाथरूम में कपड़े बदल कर आई और बोली,"विशाल ! आज यहीं रुक जाओ।"
 
"मालती, नहीं ! मुझे जाने दो !"
 
"नहीं, विशाल ! प्लीज ! रात हो गई है, ये एक सुइट है, सोने के लिए काफी बिस्तर हैं।"
मेरे बैग में टीशर्ट के अलावा एक बरमूडा भी था। रात वाकई काफी हो गई थी, पर मेरा मन खिन्न हो गया था।
 
फ़िर मैंने कहा, अच्छा, मैं सुइट के फ्रंट-रूम में सो जाता हूँ।"
 
बत्तियां बंद हुई पर मेरी आंखों से नींद ना जाने कहाँ गायब हो गई थी। अचानक कमरे में सरसराहट हुई। मैंने नाईट लैंप जलाया, देखा- सामने मालती खड़ी थी।
 
"मालती !" मैंने मुंह फेर लिया, वह पारदर्शी नाईट ड्रेस में सामने खड़ी थी।
 
"विशाल ! नाराज हो मुझसे?"
 
"नहीं !" मैंने कहा।
 
"मेरी ओर देखो प्लीज़ ! एक बार !"
 
मैंने उसकी ओर देखा, उसकी आंखों में आंसू उमड़ आए थे।
 
"मेरी मज़बूरी समझो विशाल ! मैं पुराने ख्यालों की लड़की हूँ। मेरा कौमार्य मेरे पति की अमानत है। तुम बहुत अच्छे इंसान हो। अगर तुम मेरे पति बन जाओ तो मुझसे खुशकिस्मत कोई नहीं होगा।"
 
"हो सकता है !" मैंने कहा।
 
"हाँ, पर वो शादी के बाद होगा ना ! मैं तुम्हें निराश नहीं करना चाहती, पर मेरी मज़बूरी समझो विशाल !"
 
और उसकी आंखों से आंसू की धार बह निकली। मैंने तड़पकर उसे बाँहों में भर लिया। हम एक दूसरे की बाँहों में खोये रहे। फ़िर मैंने पूछा,"मालती, हो सकता है, मैं तुम्हारा पति बन पाऊं, पर अभी तुम मुझे अपना क्या मानती हो?"
 
"एक अच्छा दोस्त।" वह बोली।
 
"बस ! मैंने कहा," ओह नो !"
 
"अच्छा, मेरे खास, मेरे प्रियतम !"
 
"बस, यही तो मैं सुनना चाहता था। देखो मालती, प्रेमी और प्रेमिका बिना कौमार्य भंग किए यौवन मधु पी सकते हैं.यह यौन क्रीडा की चरम सीमा तो नहीं, पर उसके आस पास है समझो. . ..बोलो पिलाओगी?"
 
"हाँ, वादा करो कि कुमारित्व ..."
 
"हरगिज नहीं, पर पिलाओगी, न."
 
"क्या ? " वह शरमा गई,"यौवन मधु ?"
 
"मधु बाद में, पहले दूध !" मैंने कहा।
 
हम एक दूसरे की बाँहों में खो गए। मैंने उसके दोनों गालों पर कई चुम्बन लिए, फ़िर मेरे ओंठ सरककर उसकी सुराहीदार गर्दन पर घूमने लगे। फ़िर मैंने गर्दन के आधार पर चुम्बन लिया। वह शरमाकर बाँहों से निकल भागी, मैं उसके पीछे भागा और उसे बाँहों में उठा कर उसके बिस्तर पर ले जाकर पटक दिया।
 
वह कसमसाने लगी, मैंने अपने ओंठ उसके ओंठों पर चिपका दिये और रस पीने लगा। धीरे धीरे मैंने उसके ओंठों की पंखुडियाँ फैलाई और अपनी जीभ उसके मुंह के अन्दर डाली। मेरी जिह्वा ने उसकी जिह्वा को ललकारा, उसकी जिह्वा शर्म से बाहर आई और मेरी जिह्वा से भिड़ गई। उसकी पलकें बंद हो गई थी।
 
मैंने उसकी स्लीवलेस गाउन के कंधे की तनी खोली और उसे धीरे धीरे नीचे सरकाया, वह शरमा कर फ़िर भागना चाहती थी पर जैसे ही उठी, उसकी गाउन कमर तक खुल गई और गुन्दाज तने हुए कबूतर चोंच उठाये बाहर आ गए।
 
मैंने भी तुंरत अपनी टीशर्ट हवा में उछाल दी, मेरी छाती देखकर मालती ने उँगलियाँ मुंह में डाली।
 
अब मुझे लगा कि मेरी प्रेयसी अपना इरादा ना बदल दे। मैंने फ़िर उसकी ग्रीवा के आधार पर कई चुम्बन जड़ दिए।
 
"सी, आहऽऽऽ सी.." वह सिस्कारियाँ भरने लगी, मैंने ओंठ नीचे सरकाए। फ़िर उसके उरोजों पर मुलामियत से हाथ फेरा। उरोजों के आधार पर उँगलियाँ फिराते हुए धीरे धीरे उपर ले गया, पर निप्पल जान बूझकर छोड़ दिए। मेरी उँगलियों ने मेरे ओंठों को रास्ता दिखाया। मैंने उसके कान में कहा,"मेरी रानी, दूध पीने की इजाजत है?"
 
"स्स्सिस, उन्ह हाँ"
 
मुझे कोई जल्दी नहीं थी। मैंने इस बार ओंठों से उसके स्तनाधार पर कई चुम्बन लिए।पहले बाएं स्तन पर, फ़िर दाएं स्तन पर। धीरे धीरे मेरे ओंठों का दायरा दाहिने स्तन पर कम होता गया और वह निप्पल के पास पहुंचे। मैंने अभी निप्पल पर एक गरम गरम साँस छोड़ी ही थी कि मालती में मेरा सर थाम लिया और उसे कस कर निप्पल पर जमा दिया।
 
उफ़, क्या स्वादिष्ट था उसके निप्पल का स्वाद। मैं निप्पल पर पिल पड़ा और जोरों से चूसने लगा, दूसरे हाथ से मैंने शरारत से दूसरे स्तनाग्र को चुटकी से मसल दिया...
 
"उईई, मां !"
 
मेरे हाथ उसके पेट और नाभि में घूम रहे थे।
 
'उह उई, उई मां, धीरे, और जोर से, आह धीरे।" 
 
मैंने निप्पल बदला और बाएं निप्पल पर आक्रमण कर दिया। अचानक उसने मेरा सर जोरों से दबाया और उसका शरीर जोर से कांपा, फ़िर वह निढाल हो गई।
 
"मालती !" मैंने उसके कानों में सीटी बजाई," मेरी रानी, आगे बढ़ें?"
 
उसने गहरी साँस लेकर कहा," उह, हाँऽऽऽ "
 
मेरी उंगलियाँ नाभि पर घूम रही थी। फ़िर मैंने नाभि का एक चुम्बन लिया और नाभि में जिह्वा घुसा दी। काफी गहरी थी उसकी नाभि। उत्तेजना में उसका शरीर लगा कि लहरों में नाव की तरह उपर नीचे हो रहा है। मैंने उसके नितम्बों पर एक थपकी दी, मालती इशारा समझ गई और उसने नितम्ब उठाये, मैंने गाउन उसके शरीर से अलग करके नीचे फेंक दिया और पेंटी में उंगलियाँ फंसी ही थी कि मालती शर्म से दोहरी हो गई।
 
"नहीं, यह नहीं !"
 
"क्या हुआ मेरी रानी?"
 
मालती पेट के बल लेटी थी,"नहीं विशाल, पेंटी नही !"
 
मैंने उसके नितम्ब पर हल्का दंत-प्रहार किया। 
 
"सी ऽऽ काटो नहीं ! " मैंने पेंटी के कटाव पर नितम्ब में गुदगुदा स्पर्श करना शुर किया और हलके हाथ नीचे ले गया। मालती अभी भी औंधी लेटी थी, फ़िर मैंने उसके नितम्बों के बीच उंगलियाँ फिराई और पेंटी के अन्दर से हाथ ले जाकर उसके गुदा-छिद्र को हल्के से कुरेदा।
"उई मां, मालती हवा में उछल पड़ी। इतना ही मेरे लिए काफी था, मैंने पेंटी नीचे सरका दी। मालती ने हार मानकर करवट बदली और टाँगें उपर उठाई पर तुंरत उसने योनि को हाथों से ढँक लिया।
 
"विशाल, नो ! प्लीज़ !"
 
"क्यों?"
 
"मुझे शर्म आती है ! तुम अब भी ..."
 
"ओह हो !यह तो तुम्हारा काम था। खैर मैं कर देता हूँ अपनी प्यारी-प्यारी प्रेयसी की खातिर।" मैंने एक झटके से बरमूडा और अंडरवियर उतार फेंके। मेरा लिंग ज्यादा लंबा तो नहीं है, सिर्फ़ छः इंच का, पर उस समय वह भूखे शेर की तरह दहाड़ता हुआ बाहर आ गया।
 
"मालती, इसे छू कर तो देखो मेरी जान !" मैंने प्यार से कहा," काटेगा नहीं !"
 
मालती का लाल भभूका चेहरा, उसकी आँखें भी बंद ! योनि पर उसकी हथेलियाँ और कस कर जम गई। मैंने लिंग के अग्र भाग से उसकी योनि में ढँकी उँगलियों को स्पर्श किया तो मेरे लिंग ने प्री-कम की एक बूंद उगल दी।
 
अब ?
 
इस हसीना के साथ जबरदस्ती का मेरा कोई इरादा नहीं था।
 
मैं फ़िर उसके उरोजों से रस पीने लगा।
 
"सी, उई आह इस्स्स्स्सी, ." योनि पर उसके उसके हाथ थोड़े ढीले पड़े। मैंने लिंग के अग्र भाग से उसके बाएं निप्पल को स्पर्श किया, वह सिसक पड़ी और उसकी उँगलियों ने मेरे लिंग को धकेला ..
 
इसी का तो मुझे इन्तजार था, योनि से उसकी हथेलियाँ हटते ही मैंने उसकी जांघों में अपना सर घुसा दिया और उसकी योनि का एक मधुर चुम्बन ले लिया।
 
"उई ऊऊऊऊउईईईईइ माँ मम्मी, मम्मी !"
 
और मैं उसकी आर्द्र झिरी में जीभ चलाने लगा। जीभ उपर ले जाकर मैंने उँगलियों से उसकी योनि के ओंठ खोले और जीभ कड़ी करके अन्दर घुसा दी और मथानी की तरह चलने लगा।
"अहा, अहा, उई, सीई, सीईईईईईईई, " 
 
और मैंने भगनासा खोज लिया और जिह्वा से एक करारा प्रहार किया।
 
"ऊऊऊऊऊऊऊईईईईईईइ, सीईईईईईईइ"
 
उसने मेरा सर जांघों से जोर से दबाया, उसकी योनि में मानो मदन-रस की बाढ़ आ गई.. मैं उसका यौवन मधु पीने लगा और वो उत्तेजना के चरमोत्कर्ष पर पहुँच कर निढाल हो गई। जैसे ही उसने आँखें खोली, मैंने फ़िर एक बार भगनासा का जीभ से मर्दन किया।
 
"ऊऊऊऊईईईई मर गाआआआआआईईईईईइ"
 
वो फ़िर शिखर पर पहुँची और निढाल हो गई।
 
इस बार मैंने अपना लिंग उसकी दरार से भिड़ाया। उसने चौंक कर आँखें खोली- नहीं विशाल नहीं ! प्लीज़, वादा?"
 
हाँ, वादा याद है मेरी रानी !"
 
मैंने लिंग के अग्र भाग से उसकी भगनासा के साथ घर्षण किया।
 
"सीईईईईईईए, ऊऊऊऊऊऊईईईईईईईईईईईई,आआया ह्ह्ह्ह्ह्ह्ह्ह्ह् "
 
वह फ़िर मानो आकाश में ऊँची उड़ी, एक रॉकेट की तरह, फ़िर झड़कर निढाल हो गई। जैसे ही उसकी आँखें खुली, मैंने उसका प्रगाढ़ चुम्बन लिया ।"मेरी रानी, देखा न, यौवन-क्रीड़ा का मधुर आनंद . .अब खुश हो ना?"
 
"हाँ, मजा तो आया, पर !"
 
"पर क्या?"मैंने पूछा।
 
"तुम प्यासे रह गए !"
 
"मेरी चिंता मत कर पगली"मैंने उसका एक और चुम्बन लिया।
 
"क्यों नहीं? मैंने कहा था न, कि अगर तुम मेरा वो चूसोगे तो मैं भी तुम्हारा वो चूसूंगी।"
और इससे पहले मैं कुछ कहता, उसने मेरा लिंग पकड़कर जोर से मरोड़ा मैं दर्द से कराहकर बिस्तर मैं पीठ के बल गिरा और वह मेरे उपर छा गई।उसने पहले मेरे निप्पल चूसने शुरू किए।
 
"आह, मालती, आह, प्लीज़ दांत नहीं आह !"
 
वह धीरे धीरे नीचे सरकी, नाभि पर अपन जिह्वा धुमाई, फ़िर और नीचे...फ़िर ना जाने उसे क्या सूझा, उसने रेशमी जुल्फों से तन्नाये लिंग को छेड़ा, लिंग उछल पड़ा।
 
फ़िर उसने शरमाते हुए लिंग थाम लिया और उंगलियाँ उपर नीचे फिराने लगी, लिंग के अग्र भाग को उसने नाखून से कुरेदा।
 
"आह, अचानक मुझे लगा, लिंग के अग्र भाग में कोई ठंडा अंगूर घिसा जा रहा है। वह अपने स्तनाग्र बारी बारी से घिसने लगी।
 
उसकी जिव्हा अब मेरे अंडकोष चूम रही थी। 
 
"आह, आह" मैंने उसके लंबे बाल पकड़कर सर आगे धकेला।
 
"आआआह्ह्ह्ह्ह" मैं उत्तेजना के सागर मैं गोते लगाने लगा। उसने पहले लिंग का अग्र भाग चूसा फ़िर पूरा लिंग मुंह में भर लिया।
 
"आया ह्ह्ह, ,,,वह जीभ का सञ्चालन कर रही थी। अचानक मेरे शरीर की मसें कड़ी हुई,"आ ह्ह्ह्ह्ह्ह्छ ऊऊऊ आआआ ह्ह्ह्हा " मैंने उसे पीछे धकेलना चाहा, पर कुछ नहीं, मेरा शेर उसके मुंह के पिंजरे मैं कैद था। मेरे लिंग से वीर्य की धारा फ़ूट पड़ी।
 
अगले ही क्षण बिस्तर में हम एक दूसरे की बाहों में थे।
 
इस तरह बिना मैथुन या गुदामैथुन के हमने यौन-क्रीड़ा का भरपूर आनंद उठाया।
 
तीसरे दिन मालती चली गई। मैंने मालती से कहा कि मैं जल्दी भारत आऊंगा और तुम्हारे मम्मी-पापा से तुम्हारा हाथ मांग लूँगा पर मैं अभी जल्दी भारत जाने के मूड में नहीं हूँ। मैं यहाँ यौवन के नए अनुभव अर्जित करना चाहता हूँ ताकि जब मालती से शादी हो तो उसे यौन-क्रीड़ा का सम्पूर्ण आनन्द दे सकूँ !! हम अभी भी ऑनलाइन भीनी भीनी मीठी रसभरी बारें करते हैं !

1 comment:

  1. बहुत ही बढ़िया कहानी है, धन्यवाद

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